भगवान महावीर ने साधुओं के लिए पांच महाव्रत बतलाये और सामान्य गृहस्थ के लिए बारह
29 अगस्त, नोहर अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा निर्देशित बारह व्रत दीक्षा कार्यशाला 23 अगस्त से 29 अगस्त तक चली। व्रतो का विवेचन करते हुए शासन श्री मुनि विजय कुमार जी ने उपस्थित संभागियो से कहा- जैन संस्कृति में वृत्तो की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भगवान महावीर ने साधुओं के लिए पांच महाव्रत बतलाये और सामान्य गृहस्थ के लिए बारह व्रत्तो की बात कही। महाव्रतो की परिपालना में भगवान ने कोई छूट नहीं दी किंतु बारह व्रतो का यथाशक्ति स्वीकार करने का भगवान महावीर ने निर्देश दिया। भौतिकवादी विचारधारा में जीने वाला व्यक्ति व्रत को बंधन मानता है किंतु यह अधूरी समझ का परिणाम है। व्रत बंधन तब होता है जब वह व्यक्ति पर थोपा जाता है, वृत्तो की स्वीकृति व्यक्ति स्वेच्छा से करता है। पहले व्यक्ति व्रत के विषय में गुरुजनों से सुनता है, फिर उस पर चिंतन करता है, तदनंतर वह अपनी सीमा स्वयं तय करता है। एक गृहस्थ व्यक्ति संपूर्ण त्याग नहीं कर सकता किंतु भोग की सीमा बिना कठिनाई के रख सकता है। सीमा में रहना ही वस्तुत: व्रत की आराधना है। वैसे भी पदार्थों का असीम भोग कोई व्यक्ति कर नहीं सकता, सीमा को जो गौन्ना करके चलता है, वह बीमारियों को न्योता देकर स्वय बुला लेता है, पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्थाएं भी वहा लड़खड़ा जाती है। बारह व्रतो में हर व्रत की अपनी अलग अलग विवक्षा है। इन सात दिनों में एक एक वृत्त का विवेचन किया गया। इन्हें भार नहीं अमूल्य उपहार समझकर हर कोई स्वीकार करें। भारतीय तेरापंथ युवक परिषद ने एक अच्छा उपक्रम प्रारंभ किया युवक इन्हें स्वीकार करें तो इस उपक्रम की यह एक विशेष निष्पत्ति कही जाएगी। शासन श्री ने ‘श्रावक व्रत धारो’ गीत से कार्यशाला का प्रारंभ किया। स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री चंद्रेश सिपानी और सह मंत्री चंदन छाजेड़ ने संभागी भाई बहनों को बारह व्रत की पुस्तिका वितरित की। शासन श्री ने संभागीयो से कहा- वे एक एक व्रत को समझकर अपनी सीमा तय करके भक्तों को स्वीकार करके और स्वयं की बारह व्रती श्रावक के रूप में पहचान बनाये।