अमर बलिदानी मदन लाल ढींगरा के 112वे बलिदान दिवस पर पुष्पांजलि एवं दीपदान
फैन्स ऑफ भगत सिंह टीम ने मंगलवार को भारत माँ की सच्चे सपूत और अमर बलिदानी मदन लाल ढींगरा के 112 वे बलिदान दिवस पर पुष्पांजलि अर्पित की तथा दीप जलाकर देशभक्त की लौ को निरंतर प्रज्वलित रखने का संकल्प लिया | संगठन के संस्थापक नेशनलिस्ट राजगुरु नरपत सिंह ने अमर बलिदानी मदन लाल ढींगरा के बारे में एवं उनके अद्म्य् साहस के बारे कहा कि –
मदन लाल ढींगरा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी थे। स्वतंत्रत भारत के निर्माण के लिए भारतमाता के कितने शूरवीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं महान शूरवीरों में ‘अमर शहीद मदन लाल ढींगरा’ का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है। अमर शहीद मदनलाल ढींगरा महान देशभक्त, धर्मनिष्ठ क्रांतिकारी थे- वे भारत मां की आज़ादी के लिए जीवन-पर्यन्त अनेक प्रकार के कष्ट सहन किए परन्तु अपने मार्ग से विचलित न हुए और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए फांसी पर झूल गए।
मदन लाल ढींगरा का जन्म सन् 1883 में पंजाब में एक संपन्न हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता सिविल सर्जन थे और अंग्रेज़ी रंग में पूरे रंगे हुए थे; परंतु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। वैसे तो उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था। जब मदन लाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक विद्यालय से निकाल दिया गया, तो परिवार ने मदन लाल से नाता तोड़ लिया। मदन लाल को एक क्लर्क रूप में, एक तांगा-चालक के रूप में और एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पडा। वहां उन्होंने एक यूनियन (संघ) बनाने का प्रयास किया; पर उन्हें वहां से भी निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में भी काम किया। वह लंदन में वह विनायक दामोदर सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे कट्टर देशभक्तों के संपर्क में आए। सावरकर जी ने उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। ढींगरा अभिनव भारत मंडल के सदस्य होने के साथ ही इंडिया हाउस नाम के संगठन से भी जुड़ गए जो भारतीय विद्यार्थियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों का आधार था। इस दौरान सावरकरजी और ढींगरा जी के अतिरिक्त ब्रिटेन में पढ़ने वाले अन्य बहुत से भारतीय छात्र भारत में खुदीराम बोस, कनानी दत्त, सतिंदर पाल और कांशीराम जैसे देशभक्तों को फांसी दिए जाने की घटनाओं से तिलमिला उठे और उन्होंने बदला लेने की ठानी।
1 जुलाई 1909 को इंडियन नेशनल एसोसिएशन के लंदन में आयोजित वार्षिक दिवस समारोह में बहुत से भारतीय और अंग्रेज़ शामिल हुए। ढींगरा इस समारोह में अंग्रेज़ों को सबक सिखाने के उद्देश्य से गए थे। अंग्रेज़ों के लिए भारतीयों से जासूसी कराने वाले ब्रिटिश अधिकारी सर कर्ज़न वाइली ने जैसे ही हॉल में प्रवेश किया तो ढींगरा की पिस्तौल गरज उठी और दनादन 4 गोलियां उस अंग्रेज के सीने में धंस गयी।कर्ज़न को बचाने की कोशिश करने वाला पारसी डॉक्टर कोवासी ललकाका भी ढींगरा की गोलियों से मारा गया।
कर्ज़न वाइली को गोली मारने के बाद मदन लाल ढींगरा ने अपने पिस्तौल से आत्मबलिदान करना चाहा परंतु इसके पहले उन्हें पकड़ लिया गया। 23 जुलाई को ढींगरा के प्रकरण की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट, लंदन में हुई। उनको मृत्युदण्ड दिया गया और 17 अगस्त सन् 1909 को फांसी दे दी गयी। इस महान क्रांतिकारी के रक्त से राष्ट्रभक्ति के जो बीज उत्पन्न हुए वह हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है। पुष्पांजलि एवं संकल्प के दौरान राजगुरु नरपत सिंह , जयराज सिंह , दीपक सेन , मयूरध्वज सिंह , मिथुन साहू, घनश्याम सिंह राजपुरोहित, राहुल पालीवाल, मुकुल कलाल , दिनेश गुर्जर, शैलेश नाई आदि उपस्थित रहे |