अपवाहों से रहें दूर, पशु चिकित्सकों के निर्देशानुसार करें उपचार

लम्पी स्किन डिजीज

अपवाहों से रहें दूर, पशु चिकित्सकों के निर्देशानुसार करें उपचार

मुकेश वैष्णव/दिव्यांग जगत/अजमेर

अजमेर । गौ वंश को संक्रमित कर रही लम्पी स्किन डिजीज के सम्बन्ध में अपवाहों से दूर रहकर पशु चिकित्सकों के निर्देशानुसार उपचार कराने के लिए जिला प्रशासन द्वारा सलाह दी गई है। पशु पालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. प्रफुल्ल माथुर ने बताया कि लम्पी स्किन डिजीज गौवंश में वायरस से होने वाला रोग है। मुख्य रूप से मच्छरों, मक्खियों, जुओं तथा चिंचड़ों द्वारा फैलता है। स्वस्थ पशु द्वारा रोगी पशु के सम्पर्क में आने पर भी तथा संक्रमित पशुओं के उपयोग में लिये गये जल व भोजन को पुनः उपयोग में लेने से भी यह रोग फैलता है। इस रोग से रोगी पशु में बुखार आना तथा आँख व नाक से पानी बहना, पशु की चमड़ी पर कठोर गांठे (लम्प्स) बन जाती है। इसलिए इसे लम्पी स्किन डिजीज कहते है। दूधारू पशुओं में दुग्ध उत्पादन में अचानक कमी हो जाती है। संक्रमित गर्भवती मादा पशुओं में गर्भपात की सम्भावना रहती है। इसका वायरस श्वसन तंत्र पर भी प्रभाव डालता है। रोग का संक्रमण बढ़ने पर नाक व मुँह से मवाद युक्त स्त्राव बहने लगता है। कभी-कभी रोग से पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है। हालांकि इस रोग में मृत्यु दर अत्यंत कम है।
उन्होंने बताया कि रोग से बचाव के लिए पशुशाला एवं आस-पास के स्थानों पर साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। ज्यादा समय तक पानी का भराव नहीं होने देना चाहिए। उचित कीटनाशकों का उपयोग कर मच्छर, मक्खियों, जुओं तथा चिंचड़ों पर प्रभावी नियंत्रण करना आवश्यक है। नीम की पत्तियों को जलाकर धुंआ कर कीट संचरण कम किया जाना चाहिए। समय-समय पर पशुओं के रहने के स्थान ( बाड़े) को 2 प्रतिशत सोडियम हाइपोक्लोराइड से विःसंक्रमित किया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि पशुओं के रोगग्रस्त होने पर सर्वप्रथम उसे अन्य पशुओं से अलग व दूर बांधकर रखे एवं बाहर न जाने दे। निकटतम पशु चिकित्सालय से सम्पर्क करें एवं पशु चिकित्सक के परामर्श के अनुसार उपचार एवं अन्य स्वस्थ पशुओं का बचाव करना चाहिए। प्रभावित क्षेत्र से पशुओं के आवागमन को रोकना चाहिए। रोगी पशु का चारा, पानी, दुग्ध दोहन एवं उपचार स्वस्थ पशु से अलग होना चाहिए। रोगी पशु का दूध उबालकर ही उपयोग में लेंवे।
उन्होंने बताया कि पशुपालकों को अफवाहों से दूर रहना चाहिए। किसी भी भ्रान्ति का निराकरण स्थानीय प्रशासन अथवा पशुपालन विभाग के अधिकारियों एवं कार्मिकों के साथ चर्चा कर करना चाहिए। रोग से प्रभावित पशु के शरीर पर पाये जाने वाली बीमारी मनुष्यों में नहीं होती है। यह रोग जूनोटिक नहीं है, यानी यह पशुओं से मनुष्यों में नहीं फैलता है।इस रोग से ग्रस्त पशु के दूध को उपयोग में लेने से मनुष्य के स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है और न ही व्यक्ति बीमार होता है।इस रोग से ग्रस्त पशु के दूध को उबालकर उपयोग में लिया जा सकता है।यह रोग आने पर पशु का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। लेकिन मृत्यु जैसी स्थिति सामान्यतः नहीं होती है। इस रोग से ग्रस्ति पशु का समुचित उपचार होने पर स्वस्थ होने की पूरी सम्भावना है। इस रोग की मृत्यु दर मात्र एक से 5 प्रतिशत ही है।रोग ग्रस्त पशु के पृथ्ककरण, आवागमन पर रोक, मच्छर, मक्खियों व बाह्य परजीवियों पर नियंत्रण एवं उपचार कर इस रोग पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है।इस रोग से बचाव के टीके के सम्बन्ध में भी भ्रान्ति हो सकती है। इस रोग के बचाव के लिए गोट पॉक्स का टीका उपलब्ध है। इसका उपयोग स्वस्थ पशुओं पर किया जाता है। यह केवल उन्हीं क्षेत्रों में लगाया जा रहा है जहां पर एक भी पशु इस रोग से ग्रस्त नहीं है।

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