भगवत शर्मा
गीता के सहारे जीवन को आनंदमय बनाए: स्वामी ज्ञानानंद महाराज
तीन दिवसीय दिव्य गीता सत्संग का हुआ शुभारम्भ
नारनौल 8अगस्त: श्री कृष्ण कृपा जीओ गीता परिवार द्वारा शहर की अग्रवाल सभा में शनिवार शाम तीन दिवसीय दिव्य गीता सत्संग का शुभारम्भ हुआ। भक्तों को गीता के ज्ञान की गंगा में डूबकी लगवाने पहुंचे महामण्डलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंदजी महाराज के नारनौल पहुंचने पर सर्वप्रथम जीओ गीता परिवार के संरक्षक डा. अशोक आहुजा, प्रधान घनश्याम गर्ग सहित समस्त सदस्यों द्वारा पुष्प वर्षा कर गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। अग्रवाल सभा में कथा के प्रथम दिन सर्वप्रथम स्वामी ज्ञानानंदजी महाराज ने श्रीमद्भगवत गीता का पूजन किया व इसके बाद पूर्व स्वास्थ्य मंत्री राव नरेंद्र सिंह तथा समाजसेवी सुरेश सैनी ने दीप प्रज्जवलित कर सत्संग कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इसके बाद स्वामी ज्ञानांनदजी महाराज ने गीता के महात्मय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गीता के सहारे जीवन को आनंदमय बनाया जा सकता है। गीता कोई धार्मिक पुस्तक ही नहीं बल्कि व्यवहार के धरातल पर काम करने की प्रेरणा देती है इसलिए सोते, उठते व बैठते हुए हमेशा गीता व प्रभु का स्मरण करते रहे। स्वामी जी ने भक्तों को बताया कि इस समय श्रावण मास चल रहा है और इस समय वातावरण में शीतलता प्रारम्भ होती है व ज्येष्ठ आषाढ़ की तपन से राहत मिलती है। उन्होंने बताया कि गर्मी में राहत पाने के लिए हम कूलर व एसी का सहारा लेते है परन्तु यह केवल एक स्थान तक ही सीमित रहता है पूरे वातावरण को तो केवल इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा के सहारे ही शीतल बनाते हैं। उन्होंने कहा
कि ठीक उसी प्रकार चिंता की तपन लोगों के मन में भरी है जिसे प्रभु कृपा व गीता ज्ञान की बरसात शांति प्रदान कर सकती है। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में शांति और आनंद परमात्मा से ही प्राप्त होता है और लोग इसे प्राप्त करने के लिए कही घूमकर व संगीत सुनकर प्राप्त करना चाहते है ऐसा करने से केवल क्षणिक शांति मिलती है। स्वामी जी ने कहा कि कर्म को जीवन में बंधन नहीं बनाना चाहिए बल्कि कर्म को जीवन का आनंद बनाना चाहिए जिस तरह कबीर जी ने रविदास जी ने अपनाया और महान बने। महाराज जी ने बताया कि आजकल लोग मैं और मेरा में सिमट कर रह गए कोई दूसरा व्यक्ति घर में आ जाए तो चेहरे व बोलने का ढंग बदल जाता है जबकि हमें ऐसा नहीं करना चाहिए कोई आए तो मीठे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए उसे खाना खिलाना चाहिए यही सनातन धर्म हैं। उन्होंने कहा कि बांटने से कभी कमी नहीं आती उसमें चाहे धन हो भोजन हो या प्यार हो ये जितना बांटोगे उतना ही मिलेगा। स्वामी जी ने एक दोहे तुलसी मीठे वचन से सुख उपजे चहुं ओर, वशीकरण इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर, के माध्यम से बताया कि मीठी बोली स्वयं के साथ-साथ अपने चारों ओर सुख प्रकाशित कर देती है। महाराज जी ने कहा कि समुद्र बटोरता रहता है इसलिए वह खारा होता है और बादल बांटते रहते है इसलिए वह मीठा व शांति प्रदान करने वाला होता है। स्वामी जी ने कहा कि हमें भी जीवन में बादल की तरह बांटने वाला बनना चाहिए समुद्र की तरह बटोरने वाला नहीं। कथा के अंत में आरती के बाद सभी भक्तों को प्रसाद वितरित किया गया। इस मौके पर प्रमुख रूप से जयपुर से राधिका सचिन सिंघानिया, गुरुग्राम से गोबिंद लाल आहुजा, श्री राम हनुमान गुणगान मंडल से प्रधान क्रांति निर्मल शास्त्री, रामचरितमानस से प्रविण अग्रवाल, कमलेश जैन, रजनी गर्ग, मुस्कान, मयंक गर्ग, मधु, सुनीता, मन्जु चौबे, आशा अग्रवाल, डा सन्तोष आहुजा, करनाल से सी.एम.ओ.डा अश्वनी आहुजा, ईशान, सोमदेव, युवा चेतना से दिपक, साहिल मित्तल, राजेश गोयल पूर्व प्राचार्य, सरदार बलदेव चहल, मास्टर रतनलाल, चेतन जिंदल, गोपाल नंबरदार, प्रवीण गुप्ता व भारत भूषण तायल सहित काफी संख्या में भक्तजन मौजूद थे।