धर्म अनेक पर क्षमा एक
डॉ रुचि अनेकान्त जैन,जिन फाउंडेशन, नई दिल्ली
जीवन यदि यात्रा है, मोक्ष उसकी मंजिल है, तो जीवन रूपी यात्रा में ‘क्षमा’ अनिवार्यतः होगी ।
क्षमा का उत्कृष्ट रूप हमें जैन परंपरा में प्राप्त होता है किंतु
सिर्फ जैन धर्म ही हमें क्षमा भाव रखना नहीं सिखाता है अपितु सभी धर्म यही कहते हैं कि हमें सबके प्रति अपने मन में दया और क्षमा का भाव सदैव रखना चाहिए ।
क्षमा शब्द संस्कृत की क्षम् धातु से ‘टाप’ प्रत्यय होने पर बना है इसे प्राकृत भाषा में खम, खमा, खम्म, सम्म,साम्य आदि कहते हैं । ‘क्षम’ का क्रियात्मक अर्थ क्षमा करना, सहन करना, शांत करना है ।
क्षमा शत्रौ च मित्रे च यतीनामेव भूषणम्
क्षमा वास्तव में एक अलंकरण हैं जो शत्रु या मित्र के होने पर सहिष्णुता का पाठ पढ़ाता है । वास्तविकता तो यह है कि व्यक्ति क्षमा से शक्तिशाली एवं समर्थ होता है ।
निर्मातु क्षमः समर्थ स्यात् ।
पृथ्वी में भी क्षमा गुण विद्यमान होता है क्योंकि जिसमें सहिष्णुता विद्यमान होती है उसी में क्षमा गुण होता है –
क्षमा सहिष्णुता यस्यां सा
भगवान महावीर ने कहा है कि अपने आंतरिक विकारों से ही युद्ध करो किसी अन्य से लड़ने से तुम्हें क्या मिलेगा ? क्षमापने से आत्मा में प्रसन्नता की अनुभूति होती है । जहां क्रोध का अभाव है, वहीं क्षमा है ।
सच तो यह है कि क्षमा के बिना मानवता पनप ही नहीं सकती ।
क्षमा मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है। क्षमा का अर्थ है- ‘सहनशीलता रखना’ । क्षमा धर्म की अनगिनत विशेषताएं हैं । हर मनुष्य के अंदर क्षमा भाव का होना बहुत आवश्यक है ।
महात्मा बुद्ध कहते हैं कि मूर्ख दो प्रकार के होते हैं एक वे जो अपने अपराध को अपराध के रूप में नहीं देखते हैं और दूसरे वे जो दूसरों के द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने पर भी ने क्षमा नहीं करते हैं । वैर से वैर कभी शांत नहीं होता सिर्फ प्रेम से ही वैर शांत होता है ।हजरत मोहम्मद पैगंबर ने कहा है कि जो गुस्सा पी जाते हैं और लोगों को क्षमा कर देते हैं अल्लाह ऐसी नेकी करने वालों को प्यार करता है ।
वेद व्यास कहते हैं कि जो किसी के साथ वैर भाव रखता है उसके मन को कभी शांति नहीं मिलती है ।क्षमा समर्थ मनुष्यों का गुण है और समर्थकों का भूषण ।
बाइबल के अनुसार प्रार्थना में यदि किसी के प्रति तुम्हारे मन में कोई विरोध खड़ा हो तो तत्काल क्षमापना कर दो अन्यथा परमपिता तुम्हें क्षमा नहीं करेगा ।
गुरु ग्रंथ साहिब में कहते हैं कि यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करता है तो उसे क्षमा कर दो क्योंकि क्षमा करना वीरों का काम है ।
बाणभट्ट ने कहा है कि क्षमा सभी तपस्याओं का मूल है ।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि तमाम बुराई के बाद भी हम अपने आप को प्यार करना नहीं छोड़ते तो दूसरों में कोई बात ना पसंद होने पर भी उससे प्यार क्यों नहीं कर सकते ?
हम देखें कि चाहे कोई भी धर्म हो सभी धर्मों ने एक स्वर में क्षमा को सबसे ऊंचा स्थान दिया है इसीलिए हमें सबसे पहले क्षमा याचना हमारे मन से करनी चाहिए । जब तक मन की कटुता दूर नहीं होगी तब तक क्षमापर्व मनाने का कोई अर्थ नहीं है ।
अतः जैन धर्म क्षमा भाव सिखाता है ।
क्षमावाणी पर्व को मनाने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि हम सिर्फ मेसेज ही न करें बल्कि संवाद करें और अपने मनोमालिन्य को सदा के लिए दूर कर दें । दसधम्मसारो में लिखा है –
जीवखमयंति सव्वे खमादियसे च याचइ सव्वेहिं ।
‘मिच्छा मे दुक्कडं ‘ च बोल्लइ वेरं मज्झं ण केण वि ।। क्षमा दिवस पर जीव सभी जीवों को क्षमा करते हैं सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों तथा मेरा किसी से भी वैर नहीं है ।