राजस्थान में टिडि्डयों के हमले का खतरा:इटली से आई टीम ने सर्वे के बाद किया अलर्ट, जानिए- यहां के पौधे क्यों हैं पसंदीदा भोजन
मुकेश वैष्णव/दिव्यांग जगत/अजमेर
अजमेर । ईरान से पाकिस्तान होकर आने वाली टिड्डियां राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में उगने वाले 4 पौधों (केर, गोखरू, दूधी, बूई) को खाने यहां आती हैं। इटली (रोम) से आई टीम ने इसे टिड्डियों का पसंदीदा भोजन बताया है। इन पौधों में कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है। राजस्थान के बॉर्डर के 2500 KM इलाके में टीम ने टिड्डियों के व्यवहार, आहार और भारत में आने की संभावनाओं पर सर्वे किया। एक्सपर्ट ने दावा किया कि अगले 6 महीने टिड्डियों का खतरा नहीं है। इस समय यमन और मोरक्को में टिड्डी प्रजनन हुआ है। ऐसे में 3 जिलों (जैसलमेर, बीकानेर और बाड़मेर) में अलर्ट बताया है। रेगिस्तानी इलाकों में मोबाइल ऐप की मदद से सर्वे कर रहे हैं डॉ. सिरिल और राजस्थान के टिड्डी नियंत्रण विभाग के कर्मचारी।
इटली से आई टीम ने किया था 9 दिन सर्वे
टिड्डी नियंत्रण विभाग जोधपुर के प्रभारी डाॅ. वीरेंद्र कुमार ने बताया- इटली में बने एफएओ रोम से डेजर्ट लोकस्ट फोरकास्टिंग अधिकारी डाॅ. सिरिल जोधपुर आए थे। उन्होंने 9 दिन (10 से 18 अक्टूबर) के सर्वे में टिड्डी से जुड़ी जानकारियां जुटाई और उन्हें आकर्षित करने वाले पौधों के बारे में रिसर्च की। इस रिसर्च में सामने आया कि अगले 6 महीने तक राजस्थान में टिड्डी के आने की कोई संभावना नहीं है। विभाग ने भी पहले इसी तरह के सर्वे में अनुमान लगाया था कि हवाओं के उलटे बहाव के कारण टिड्डियां यहां नहीं आ पाएंगी। टिड्डियां पाकिस्तान की दिशा से भारत में आती हैं। सबसे पहले बाड़मेर, जैसलमेर और बीकानेर के किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं।
टिड्डियां पाकिस्तान की दिशा से भारत में आती हैं।
6 महीने तक नुकसान की आशंका नहीं
प्रभारी डाॅ. वीरेंद्र कुमार ने बताया- इटली स्थित डेजर्ट लोकस्ट फोरकास्टिंग के माध्यम से पूरे विश्व में टिड्डी दलों पर निगरानी रखी जाती है। निगरानी दल के डाॅ. सिरिल ने ही 2019-20 में जिन स्थानों पर टिड्डी आई थी वहां का निरीक्षण किया था। इस बार के सर्वे में टिड्डी के नुकसान की आशंका नहीं जताई है।
डाॅ. वीरेंद्र कुमार ने बताया- जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर के क्षेत्रों में मशीनी सर्वे किया गया। इस दौरान स्थानीय टिड्डी नियंत्रण विभाग सहित 14 लोगों की टीम मौजूद रही। जोधपुर के टिड्डी नियंत्रक विभाग के पास राजस्थान के जालोर, बाड़मेर, नागौर, अनूपगढ़, जैसलमेर, जोधपुर, चूरू, बीकानेर, सूरतगढ़, फलोदी के अलावा गुजरात के पालनपुर, भुज, वडोदरा आदि इलाकों का चार्ज है। तस्वीर में नजर आ रही झाड़ियां केर, गोखरू, दूधी, बूई की हैं। टीम ने इन पौधों का सर्वे कर टिड्डियों की जांच की।
इन पौधों के लिए हाई अलर्ट
प्रभारी डाॅ. वीरेंद्र कुमार ने बताया- इटली से आई टीम ने हाई क्वालिटी के कैमरों, मोबाइल ऐप और टिड्डी पकड़ने वाली नेट केज के जरिए कुछ एक्सपेरिमेंट भी किए हैं। इसमें टिड्डी के व्यवहार, उसके पसंद की वनस्पति पर भी सर्वे किया गया।
सर्वे के दौरान सामने आया कि केर, गोखरू, दूधी, बूई के खेतों में टिड्डियों ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया था। इटली से आई टीम ने इन चार पौधों को टिड्डियों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त आहार बताया। जिन जगहों पर इन पौधों की संख्या ज्यादा होगी वहां टिड्डी आने का खतरा ज्यादा है। टिड्डियां केर, गोखरू, दूधी, बूई को खाना बेहद पसंद करती हैं। इन पौधों में कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है, ये टिड्डियों का पसंदीदा खाना है। ये पौधे जैसलमेर, बीकानेर और बाड़मेर में पाए जाते हैं। ऐसे में अगर टिड्डियों का हमला होगा तो सबसे पहले इन तीन क्षेत्रों के लिए अलर्ट जारी किया गया है।
2500 KM के इलाके में हुआ सर्वे
उन्होंने बताया- भारत में सर्वे के लिए ई लोकस्ट 3एम प्रो मोबाइल ऐप का प्रयोग किया जाता है। इटली के एक्सपर्ट ई लोकस्ट 3 डब्ल्यू के जरिए सर्वे करते हैं। इसमें जीपीएस के साथ ही हाई कैमरा क्वालिटी की मदद से खरपतवार के बीच टिड्डियों की पहचान की जाती है।
डॉ. वीरेंद्र कुमार ने बताया- टीम ने मरुस्थलीय टिड्डियों को लेकर सर्वे किया था। इस सर्वे में 2500 KM के इलाके को चिह्नित कर फसलों, पौधों और टिड्डियों के रहने के माहौल की जांच की गई। नेट केज से टिड्डी का नमूना लेकर FSIL बीकानेर लैब में भेजा गया। डॉ. सिरिल मोबाइल ऐप की मदद से टिड्डियों के आने के कारण पता लगाने आए थे। यह है टिड्डी, कई बार किसान ग्रास हॉपर को टिड्डी समझ बैठते हैं। दोनों दिखने में एक जैसे हैं। लेकिन, टिड्डियां झुंड में आती है जबकि ग्रास हॉपर अकेले होते हैं।
यह है टिड्डी, कई बार किसान ग्रास हॉपर को टिड्डी समझ बैठते हैं। दोनों दिखने में एक जैसे हैं। लेकिन, टिड्डियां झुंड में आती है जबकि ग्रास हॉपर अकेले होते हैं।
साल 2019 में आई थी टिड्डी
राजस्थान के बाॅर्डर इलाकों, बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर, के सीमावर्ती इलाकों में 2019 में टिड्डी आई थी। उस समय पूरे प्रदेश में करीब 4 लाख हैक्टेयर फसलों को टिड्डी ने चट कर दिया था। टिड्डियों को कंट्रोल करने के लिए विभाग को करीब 7 से 8 माह लग गए थे। हजारों किसानों के खेत बर्बाद हो गए थे। 2023 में अगस्त माह में जैसलमेर जिले के मोहनगढ एरिया में भी टिड्डी आई थी। करीब 836 हैक्टेयर में फसल बर्बाद हो गई थी।
10 मिनट में नष्ट कर देती हैं बड़े से बड़े खेत की फसल
टिड्डी नियंत्रण विभाग के सहायक निदेशक डॉ. वीरेंद्र कुमार बताते हैं- एक बार टिड्डियां किसी खेत की फसल पर बैठ जाए, पल भर में उसे नष्ट कर देती हैं। भारत में टिड्डियां मोरक्को से चलकर इथोपिया, ईरान, इजिप्ट, अफगानिस्तान, पाकिस्तान होते हुए आती हैं। इनके लिए बारिश के बाद नमी का मौसम सबसे अच्छा रहता है। इनकी लाइफ ढाई से तीन माह तक होती है। इनका वजन करीब 3 ग्राम होता है। अपने वजन से दो गुना पांच से 6 ग्राम तक फसल ये चट कर जाती हैं। टिड्डी दल रात के समय ही फसलों को नुकसान पहुंचाता है। अगले दिन सूर्योदय के साथ उड़ जाता है।