आचार्य विद्यासागर ने व्यक्ति की आत्मा को ही जन्म दिया है : मुनिश्री
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पिता ने शरीर को जन्म दिया, आचार्य विद्यासागर ने व्यक्ति की आत्मा को ही जन्म दिया है : मुनिश्री
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आचार्य गुरुदेव श्रीविद्यासागर महाराज पंचम काल में चलते फिरते मोक्ष मार्ग हैं। उपदेशों के द्वारा श्रावकों को धर्म ध्यान में आगे बढ़ा रहे हैं उनके पीछे जितने लोग चल रहे हैं वे सब मोक्ष मार्ग की ओर से बढ़ रहे हैं। यह बात भाग्योदय तीर्थ में मुनिश्री प्रशस्त सागर महाराज ने अपने प्रवचन में कही। उन्होंने कहा अनंतवार से आप सभी संसार का भ्रमण कर रहे हैं। इस मानव जीवन में आप लोगों को बोध प्राप्त हो गया है। इसको साथ लेकर चलना है जो अगले भव में काम आ सके। एक बार आचार्यश्री ने कहा था कि त्रियांच मुद्रा को देख कर भी सर्वज्ञता किसी की दृष्टि में नहीं आती है। वह वीतरागता का परिणाम होती है। व्रतों का पालन निर्दोष ढंग से होना चाहिए। उन्होंने कहा एक व्यक्ति को बैराग्य के मार्ग पर जाना था लेकिन उनके घर के लोग तैयार नहीं थे लेकिन वह व्यक्ति किसी की बात सुनने तैयार नहीं था। वह आचार्यश्री के दर्शन करने के लिए पहुंचा और व्रत लेने का संकल्प लिया। जब उनके परिजनों को इस बात का पता चला तो बहुत गुस्से में वहां पहुंचे लेकिन जैसे ही गुरुदेव की शरण में पहुंचे उनकी गर्मी शांत हो गई। वृक्ष की छांव में जो व्यक्ति पहुंचता है उसे हमेशा छांव ही मिलती है। गुरुदेव ने आशीर्वाद दिया और वह गुस्सैल व्यक्ति भी पानी पानी हो गया। मुनिश्री ने कहा कि पिता ने शरीर को जन्म दिया है लेकिन आचार्य विद्यासागर महाराज ने उस व्यक्ति की आत्मा को ही जन्म दिया है।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमडी

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