DESH KI AAWAJ

दिव्यांगो को कितना सताओगे साहब,अब तो अधिकार दे दो

दिव्यांगो की पीड़ा कोन सुने “
राहत की उम्मीद में दर दर भटकने और ठोकर खाने पर मजबूर ——–

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बांसवाड़ा / जिनके साथ प्रकृति ने न्याय नही किया वो अपने अधिकारों की लड़ाई ख़ुद लड़ रहे है ? इसमें भी न्याय की उम्मीद में दर दर भटकने और ठोकरें खाने के बाद खुद दिव्यांग राहत की उम्मीद में अपने उसी अधिकारी के निवास पर और कार्यालय पर पहचे जिसने सबसे ज्यादा कुठाराघात किया है न केवल आदेश में मनमर्जी माफ़िक परिवर्तन किया और कुछ पदों पर “प्रधानाचार्य से डीईओ” के रिक्त पदों पर तो पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने से भी इसलिए इन्कार कर दिया कि दिव्यांग उपलब्ध नही है जबकि राज्य भर में शिक्षा विभाग में रिक्त पदों पर पदोन्नति की आस लगाए बैठे हैं आपत्ति दर्ज कराए जाने के बाद भी लाभ से वंचित है।
आज राज्य भर के दिव्यांग बीकानेर में शिक्षा निदेशक के कार्यालय पर एकत्रित होकर ” पदोन्नति में आरक्षण “में पदस्थापन में कोंसलिंग में भेदभाव कर चहेतो को लाभ

पहुंचाने के उद्देश्य के विरोध में प्रदर्शन करते हुए ज्ञापन प्रस्तुत किया और एक समान सभी दिव्यांगो 40% से उप्पर काउसलिंग में बुलाए जाने की मांग कर सभी को लाभान्वित करने की मांग की ओर राज्य भर के दिव्यांगता के लाभ लेने वाले सभी दिव्यांगो के चिकित्सक द्वारा जारी दिव्यांग्ता प्रमाण पत्र की उच्च स्तरीय जांच की की गई और बताया की एक भर्ती में शामिल दिव्यांगों के प्रमाण पत्र की बांसवाड़ा में जांच होने पर कई आवेदन खारिज किए गए जबकि राज्य भर में कई विभागों में सैकड़ों दिव्यांग फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर लाभ ले रहे है उनकी कठोरता से जांच करने से वास्तविक दिव्यांगो को लाभ मिलेगा।


दिव्यांग संघ राजस्थान के जिलाध्यक्ष जितेंद्र कुमार उपाध्याय ने बताया की माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने तोड़ मरोड़ कर मूल भावना की उपेक्षा करते हुवे दिव्यांगो को 21 श्रेणी और चार उपवर्ग में बाटने से पदोन्नति में आरक्षण का लाभ 4% की जगह 1% भी लाभ नही मिल रहा है और लाभ की उम्मीद में दर दर की ठोकरें खाने पर दिव्यांग मजबूर है।
राजस्थान में दिव्यांगों को पदोन्नति में आरक्षण के माननीय सुप्रीम कोर्ट के जारी आदेश की दिनांक से नही देकर कई वर्षो बाद की तिथि से देने के कार्मिक विभाग राजस्थान ने जारी किए जिसकी भी पालना शिक्षा निदेशालय के अधिकारी सीधी भर्ती नियुक्ति में पदस्थापन और पदोन्नति में पदस्थापन में भी नही कर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश में हेर फेर कर मूल भावना की हत्या कर रहे है।
उन्होंने बताया की शिक्षा विभाग द्वारा प्रधानाचार्य से डीईओ के रिक्त पदों पर “दिव्यांगो के पदोन्नति” में आरक्षण देने के विधिक अधिकार की उपेक्षा कर किसी भी दिव्यांग को पदोन्नति में शामिल नही किया गया और वर्तमान में व्याख्याता से प्रधानाचार्य की पदोन्नति में आरक्षण देने हेतु पदस्थापन की ऑनलाइन काउसलिंग में भी दिव्यांग में वर्ग – भेद कर भेदभाव कर रही है जबकि वास्तविक धरातल पर दिव्यांग साथियों को सारे लाभ 40% से उप्पर दिव्यांगता होने पर दिए जाते है तो वर्तमान पदस्थापन की ऑनलाइन काउसलिंग में 70 % से ऊपर दिव्यांगों को ही लाभ देने के उद्देश्य से पदस्थापन की ऑनलाइन काउसलिंग में प्रथम दिन बुलाया है जबकि 40% से उप्पर के सभी दिव्यांगो को बुलाया जाना था। जबकि शिक्षा निदेशक ने स्वेच्छाचारिता करते हुवे 70 % से ऊपर दिव्यांगों को ही लाभ देने के उद्देश्य से बुलाया जिससे 41% से 69% दिव्यांगो के विधिक अधिकार का उल्लंघन हो रहा है ।
इधर शिक्षा निदेशक जी के द्वारा जारी आदेश 70 %से ऊपर दिव्यांगों को ही कोसिलिंग में बुलाए जाने के उलट मातहत शिक्षा अधिकारी सयुक्त निदेशक विभिन्न” दिव्तीय वेतन श्रृंखला से व्याख्याता ” में पदोन्नति में आरक्षण की काउंसिलिंग में सभी 40 % से उप्पर के दिव्यांगो को बुलाया है जोकि विधि अनुरूप सही कार्यवाही भी है।
जिलाध्यक्ष जितेंद्र कुमार उपाध्याय ने शिक्षा निदेशक बीकानेर पर दिव्यांगों के साथ भेदभाव, वर्गीकरण कर वर्ग भेद करने ओर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश की दिनांक से लाभ नही देने से षडयंत्र रच कर भेदभाव करने का गंभीर आरोप लगाया है और स्वयं शिक्षा निदेशक बीकानेर के आवास पर एकत्रित होकर पदोन्नति में आरक्षण के आदेश में जारी आदेश की व्याख्या कोर्ट के मंशानुरूप करने, व्याप्त विसंगतियों पर ध्यान आकर्षित किया है।
जिलाध्यक्ष जितेंद्र कुमार उपाध्याय ने कहा की माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश में साफ कहा है कि पदोन्नति में आरक्षण देने हेतु समस्त आदेश एससी एसटी संवर्ग के समान दिव्यांगो को समान लाभ प्राप्त होगे और पदोन्नति में वरीयता सूची निर्माण में रिक्त पदों के 7 गुणा तक वरीयता सूची निर्माण की जावेगी जबकि वास्तविक धरातल पर एससीएसटी की वरीयता सूची 7 गुणा बनती है जबकि दिव्यांगो की वरीयता सूची 3 गुणा ही बनाई जा रही है बाद में आने वाले दिव्यांग कार्मिकों को लाभ नही मिल रहा हैं इससे ज्यादा हास्यास्पद स्थिति तो यह है की बड़े साहब तो कानून के साथ खेल करते हुवे मनमर्जी से 40% की जगह 70% से उप्पर दिव्यांगो को पदस्थापन में बुला रहे है जबकि शिक्षा निदेशक के मातहत अधिकारी को नियम की पालना करने के लिय निर्देशित कर यह कहावत चरितार्थ कर रहे हैं कि “चोर चोरी से जाय हेराफेरी से नही जाय” साथ ही जिन्हे “प्रकृति ने मारा उन्हे और कितना मारोगे साहब

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