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वाह री सरकार दिव्यांगों को भी बांट दिया उम्र और प्रतिशत में

वाह री सरकार दिव्यांगों को भी बांट दिया उम्र और प्रतिशत में

राजस्थान के दिव्यांग पिछले 6 साल से अपनी पेंशन बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार के द्वारा लाखों दिव्यांगों की पेंशन राशि नही बढ़ाई गई हैं। महंगाई आसमान को छू रही है,दिव्यांग के सामने रोजगार का कोई विकल्प नही हैं,अब ऐसे में केवल उसे एक ही विकल्प दिखाई देता हैं कि सरकार हमारी पेंशन बढ़ोतरी करें ताकि हम आसानी से जीवन यापन कर सकें।2016 के बाद सबसे पहले इसी वर्तमान सरकार ने दिव्यांगों को उम्र के आधार पर बांटकर पेंशन बढ़ोतरी की थी। 55 वर्ष से कम आयु वाली महिला तथा 58 वर्ष से कम आयु वर्ग के पुरुष दिव्यांगों को प्रतिमाह 750 रुपये तथा 55 वर्ष से 75 वर्ष तक सभी आयु वर्ग के महिला पुरुषों को 1000 रुपये प्रतिमाह तथा 75 से अधिक आयु वर्ग के दिव्यांगों को 1250 रुपये पेंशन मिल रही हैं।

जब सरकारों ने दिव्यांग की परिभाषा यह दे रखी हैं कि 40 प्रतिशत से अधिक वाला व्यक्ति दिव्यांग श्रेणी में माना जायेगा तो फिर उम्र के आधार पर पेंशन राशि क्यों ? जबकि दिव्यांग तो दिव्यांग होता हैं चाहे वो 18 साल का हो या 58 साल का।

अभी एक और नया लॉलीपॉप गहलोत सरकार ने फिर दिव्यांगों को दिया है कि जो ऐसे दिव्यांग हैं जिनको अपने दैनिक कार्य करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता हैं उन्हें पेंशन राशि के अतिरिक्त 1000 रुपये की मासिक आर्थिक सहायता दी जाएगी,अर्थात यह पेंशन बढ़ोतरी नही हैं,यह हैं आर्थिक सहायता।

अब प्रदेश के दिव्यांग अभी तक यह समझ नही पा रहे हैं कि सरकार यह कैसे तय करेगी कि यह दिव्यांग व्यक्ति दूसरों पर निर्भर है और यह नही। क्योंकि राजस्थान में तो सिस्टम का वो हाल हैं कि जो चल फिर सकता हैं उसके पास तो 90 प्रतिशत का दिव्यांग प्रमाण पत्र हैं और जो व्हीलचेयर पर बैठकर अपनी दिनचर्या करता हैं वो 40 प्रतिशत दिव्यांग हैं। इतना बड़ा फर्जीवाड़ा हो रहा हैं राजस्थान में दिव्यांगों के साथ। अब यह सरकार को तय करना हैं कि वो दिव्यांग को प्रतिशत के आधार पर 1000 रुपये की आर्थिक सहायता देगी या उम्र के आधार पर। कुल मिलाकर सरकार ने दिव्यांगों को उम्र और प्रतिशत में तो बांट ही दिया हैं।

पेंशन बढ़ोतरी के लिए पूरे राजस्थान में कई दिव्यांग संगठन धरने, प्रदर्शन,अनशन काफी बार कर चुके हैं और सैकड़ो ज्ञापन मुख्यमंत्री के नाम सरकार तक पंहुचाये जा चुके हैं लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नही रेंगी।

संपादक-उत्तम चंद जैन

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