आखिर बाढ़ की स्थिति क्यों जानना जरूरी
आखिर बाढ़ की स्थिति क्यों जानना जरूरी
लक्ष्मण वर्मा / दिव्यांग जगत
बाढ़ के पानी को संग्रह कर वाटर लेवल बढ़ाने के साथ पीने के पानी की समस्या से निजात पा सकते हैं।
वर्षा ऋतु प्रारम्भ होते यह सामान्य सी बात हो गई कि अमुक जगहों पर बाढ़ के हालात बन गए, बाढ़ आ गई, लोग डुब रहें हैं, इमारतें धराशाई हो गईं हैं, जन जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। बाढ़ वैसे वर्षा के समय ही नहीं यह कभी भी घटित होने वालीं घटना है, सर्दी, गर्मी, वर्षा चाहें जो समय हों तेज़ मुसला धार वर्षा जो 100 mm से अधिक एक साथ, एक समय, एक स्थान पर होने से बाढ़ के हालात बनने की संभावनाओं से नकारा नहीं जा सकता। लेकिन पानी से उपजी यह आपदा अधिकत्म उन स्थानों पर देखने को मिलती रही जहां ओस्त वर्षा 650 mm से 1000 mmके मध्य होती रही, कम वर्षा या रेगिस्तान में देखने को नहीं मिलते। असम, उत्तराखण्ड, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना जैसे राज्यों में हर वर्ष बाढ़ का कहंर रहता जो आज भी देखने को मिल रहे है। यहां के हालात बड़े गंभीर बनें हुए हैं।
आखिर ऐसा क्यों हों रहा है, जहां बाढ़ नहीं आने चाहिए वहां भी हालात गम्भीर, यह जानना-समझना बहुत जरूरी है । बाढ़ बहते पानी के रास्ते में अवरोध पैदा करने या एका एक बादल फटने जैसी स्थिति होने से उत्पन्न होते हैं जैसे श्रीगंगानगर में इस सप्ताह एक साथ 312 mm वर्ष हुईं, जिससे बाढ़ के हालात बने, प्रशासन नाकामयाब रहा, सेना बुलाई गई, लोगों को रहात प्राप्त हुईं। यहां औसत वर्षा 205mm होती हैं लेकिन बादलों के जोशीले स्वभाव ने हालात गम्भीर बना दिया। दोष बादलों का नहीं उन्हें बरसना था, जहां बरसने जैसा वातावरण बना वो तेज़ बरसे। बादलों के बरसने के बाद धरती पर जो हालात बने हमें इन हालातो को समझाना, उन पर अमल करना, समस्या के समाधान को लेकर समाज एवं सरकार के साथ इसके निदान हेतु कार्य करना , नितियों को कठोरता के साथ लागू कराना समय की मांग है, क्यों की एक बार बाढ़ आने से अरबों खरबों की आर्थिक हानी के साथ काफ़ी जन जीवन बे घर हों जातें हैं, तीस साल पहले जयपुर में आई बाढ़ में बे धर हुए परिवार आज तक नहीं सम्भल पाएं हैं। 2014 में 196mm वर्षा होने पर भी श्री गंगानगर में सेना को बुलाया गया था वहीं चुनावड् , मकराना, उर्मिला सागर में हुईं भारी वर्षा ने पोल खोल दी। सीकर में वही हालात बने हुए हैं, वर्षा के बाद एका एक पुरा शहर जलमग्न हो जाता है। जन जीवन परेशान होने के साथ मायूस होकर गन्दे पानी को घर अंगन में आने से रोकने में लगा रहता , कच्ची बस्तियों में निवास करने वाले लोग बे घर हों जातें हैं।
आज बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिकरण, पर्यावरणीय प्रदुषण, पानी के बहाव क्षेत्रों में बढ़ते अतिक्रमण, नदियों में हुएं अवरोधों, से राजस्थान जैसे कम वर्षा वालें क्षेत्रों में बाढ़ के हालात हर शहर में बनते जा रहे जो एक मानव निर्मित आपदाओं में से है।आज कहें तो गंगा जैसी महानदी भी अतिक्रमण की चपेटे से नहीं बच सकी, छोटे नालों को मिटाना मामूली बात रहीं। राजस्थान में प्रत्येक नदी अतिक्रमण की चपेट में होने के साथ दम तोड रही है वहीं एक ना एक दिन प्राकृतिक प्रकोपों को झेलने के लिए माव स्वयं को तैयार रहना होगा। अलवर जिले में जयसमंद बांध के पानी के आवक क्षेत्र में बड़े अतिक्रमण से नदी के अवशेष खत्म होने के साथ पानी की आवक रूक गईं, जिससे साफ़ होता है की यदि यहां इसी प्रकार से बादल फटे लो निचले क्षेत्रों में बाढ़ के हालात उत्पन्न होना स्वाभाविक है।
आए दिन पैदा होने वालीं इस समस्या से निजात पाने के लिए शहरों के विकास से पुर्व वहां की भौगोलिक स्थिति को समझाना, प्रिप्लान तैयार कना ज़रुरी है, नदी, नालों को चिन्हित करना, शहरों से निकलने वाले पानी के लिए पर्याप्त चौड़ाई में नालों का निर्माण कराना प्रशासन की पहली प्राथमिकता होने के साथ एक शहर में पैदा हुईं आपदाओं से सीख कर हमें दुसरे शहर को समस्या से बचाने में देरी नहीं करनी चाहिए। शहरों के विकास से पुर्व पानी के बहाव क्षेत्रों को चिन्हित कर उन्हें सुरक्षित किया जाए, नदियों को अतिक्रमण से मुक्ति दिलाई जाए, बड़े बांधों के भराव क्षमता को मध्य नजर रखते हुए मौसम विभाग से प्राप्त सुचनाओं के साथ समय पर अतिरिक्त पानी को निकालना उच्चित समझा जाए, वर्षा के मीठे पानी को अणडंर ग्राउंड वाटर लेवल बढ़ाने के लिए पर्याप्त ट्यूबवेल पुर्व में खोदे जाए जिससे पानी को संग्रह किया जा सके, इससे बाढ़ जैसे हालातो से बचने के साथ अणडंर ग्राउंड वाटर लेवल भी बढ़ेगा जो भविष्य में पेयजल की आपूर्ति करने में सहायक होगा।
(लेखक के अपने निजी विचार है)
लेखक जाने माने पर्यावरण कार्यकर्ता व समाज विज्ञानी है ।