दिव्यांग लीला के घर इसलिए पहुंचे न्यायधीश, पैरो से लिखा था पत्र
न्याय की उम्मीद- न्यायधीश को पैरों से लिखा लेटर, दिव्यांग लीला के घर पहुचे न्यायधीश
सुखराम मीणा/ दिव्यांग जगत
बाड़मेर- पुराने जमाने की एक प्रसिद्ध कहावत है ना की अगर हौसला बुंलद हो तो हर मंजिल को पाया जा सकता है। लीला के हौसला सातवें आसमान में है। आज लीला के परिवार में खुशी का माहौल है। एक माह पहले लीला ने अपने पैरों से चीफ जस्टिस को लेटर लिखकर कोआपरेटिव बैंक से अपने पैसे वापस दिलाने की मांग की थी। कोर्ट संज्ञान लेते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को पूरे मामले की कार्यवाही करने के निर्देश दिए और गुरुवार को जिला अपर न्यायधीश लीला के घर पर पहुंचकर पूरी जानकारी जुटाई है। लीला को राज्य सरकार द्वारा मिली सहायता राशि साढ़े चार लाख रुपए की वापस दिलाने की कार्रवाई विधिक सेवा प्राधिकरण बालोतरा द्वारा की जाएगी।
ये है मामला –
दरअसल, बाड़मेर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर हापो की ढाणी निवासी लीला कंवर जब चौथी क्लास में पढ़ती थी, तब खेलते-खेलते खुले तारों को हाथ में पकड़ लिया। करंट लगने से बेहोश होकर गिर गई। परिवार के लोग अस्पताल ले गए, वहां से जोधपुर फिर अहमदाबाद में इलाज करवाया। डॉक्टर की सलाह पर दोनों हाथ कटवाने पड़े थे। सरकार की तरफ से लीला को साढ़े चार लाख रुपए की सहायता राशि दी गई थी।
लीला ने पैरों से एक माह पूर्व लिखा था चीफ जस्टिस को लेटर।
लीला ने पैरों से एक माह पूर्व लिखा था चीफ जस्टिस को लेटर।
लीला के पिता किसान, प्राइवेट बैंक ने लालच देकर करवाए जमा
लीला बताती है कि मेरे पिता किसान थे। हादसे के बाद पिता मुझे जोधपुर, अहमदाबाद लेकर गए। वहां पर इलाज करवाया। उस समय घर में कमाने वाला भी कोई नहीं था। जैसे-तैसे करके पिता ने मेरा इलाज करवाया। बिजली विभाग से साढे़ चार लाख रुपए की मदद मिली। पापा ने इलाहबाद बैंक में जमा करवा दिए। साल 2017 में गांव के एजेंट ने लालच दिया कि प्राइवेट बैंक में पांच लाख रुपए से ज्यादा जमा करवाने पर 7 सालों में दोगुने हो जाएंगे। पिता ने साढ़े चार लाख व पचास हजार रुपए इधर-उधर से लाकर जमा करवा दिए। अब वह बैंक भी उठ गई और हमारे हक का पैसा भी लूट ले गई। लीला ने एक माह पहले चीफ जस्टिस को दोनों पैरों से लेटर लिखकर बैंक से रुपए दिलाने की मांग की थी।