तनिष्का बनी साध्वी,छोड़ा राजमहलों को, अब धर्मपथ की और प्रस्थान
रतलाम. रतलाम की बेटी तनिष्का चाणोदिया ने सैलाना राजमहल में संयम जीवन स्वीकार कर राजपथ पर प्रस्थान किया। राजवंश परिवार द्वारा शाही अंदाज में आयोजित दीक्षा पर्व में तनिष्का का नूतन नामकरण साध्वी तीर्थवर्षा किया गया। राजवंश के विक्रम सिंह परिवार ने नूतन दीक्षित का अक्षत और कुमकुम तिलक से वंदन अभिनन्दन किया।
राजवंश परिवार ने दिया शुभाशीष
बुधवार को बंधु बेलड़ी आचार्य जिनचंद्रसागरसूरि आदि सुविशाल श्रमण श्रमणी वृन्द की निश्रा में सैलाना राजवंश के इतिहास में पहली बार दीक्षा का प्रसंग अविस्मर्णीय बन गया। आचार्य एवं मुमुक्षु की पैलेस के मुख्य द्वार पर सिंह ने परम्परानुसार अगवानी करते हुए स्वागत किया। उन्होंने नूतन साध्वीजी को उनके मंगलमय संयम जीवन के लिए अग्रिम शुभाशीष दिया। इस अवसर पर राजवंश परिवार का श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ एवं रतलाम दीक्षा महोत्सव समिति आदि ने शाल श्रीफल एवं प्रतीक चिन्ह भेंट कर बहुमान किया। राजवंश परिवार ने सकल श्रीसंघ के स्वामी वात्सल्य का लाभ लिया।
संयमी की जयजयकार..
दीक्षा पर्व की शुरुआत आचार्य की निश्रा में वर्षीदान वरघोडे के साथ हुई। मुमुक्षु ने रथ में सवार होकर सांसरिक जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुओं का मुक्तहस्त से दान किया। युवाओं की टोलियाँ भक्ति गीतों पर झूमते नाचते चल रही थी। श्रीसंघ ‘दीक्षार्थी अमर रहो..’ के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे। मार्ग में जगह जगह गहुली करते हुए वंदन एवं स्वागत किया गया। वर्षीदान यात्रा शहर के प्रमुख मार्गो से होकर पैलेस में पहुंचकर दीक्षा कार्यकम में परिवर्तित हो गई। कोई तीन घंटे से अधिक समय तक आयोजित दीक्षा में मध्यप्रदेश के अतिरिक्त गुजरात और महाराष्ट्र से भी समाजजन पहुंचे थे।
रजोहरण मिलते ही छलके ख़ुशी के आँसूविधिविधान के साथ मुमुक्षु के दीक्षा की सम्पूर्ण विधि प्रसन्नचन्द्रसागर मसा, पदमचन्द्रसागर मसा, आनंदचन्द्रसागर मसा ने सम्पन्न करवाई। विजय तिलक के साथ जैसे ही मुमुक्षु तनिष्का को आचार्य ने राजोहरण प्रदान किया। वे ख़ुशी से झूम उठी। आँखों में ख़ुशी के आँसू तो कदम थिरकने से रुकने को तैयार नहीं थे। करतल ध्वनि और जयकारों के बीच नूतन दीक्षित साध्वी के वेश में जैसे ही पहुंची, सर्वप्रथम उनकी हाल ही में दीक्षित पूर्व में सांसारिक बहन अब साध्वी पंक्तिवर्षा मसा उनका हाथ थाम लेकर आयी। सर्वप्रथम उन्होंने आचार्य और साध्वी को वंदन कर आशिर्वाद लिया। उनका नूतन नामकरण और शेष विधि सम्पूर्ण की गई। उपस्थितजनों ने साध्वीजी को अक्षत से वधाया। संचालन सौरभ भंडारी और संगीत संवेदना विनोद भाई की रही।
तीसरी पीढ़ी ने पूर्वजों का मान बढ़ायाइस मौके पर आचार्य ने कहा कि संयम जीवन ही मानव जीवन का सार है। धन्य है वे संयमी जो छोटी उम्र में ही इस सत्य को समझकर वीर पथ पर प्रस्थान के लिए चल पढ़ते है। उन्होंने कहा कि अभी तक हमने कोई 122 से अधिक मुमुक्षुओं को संयम जीवन अंगीकार करवाया है, लेकिन यह पहला अवसर है जब किसी राजवंश परिवार ने अपने राजमहल में दीक्षा करवाई है। इस दीक्षा का महत्व अब और भी बढ़ जाता है। करीब 100 साल पहले मालवा के परम उपकारी आगमोद्धारक आनंदसागरसूरी मसा का चातुर्मास हुआ था, उन्होंने सैलाना नरेश दिलीप सिंह को प्रतिबोध करवाते हुए जिनशासन के प्रति श्रद्धावान बनाया था। आज उसी राजवंश परिवार की तीसरी पीढ़ी ने अपने पूर्वजों से मिले संस्कारों को आगे बढ़ाते हुए दीक्षा का आयोजन पैलेस में कर अपने पूर्वजों का मान बढ़ाया है। जो एक स्वर्णिम इतिहास बन गया है। इसे सदैव याद रखा जायेगा। सैलाना में तीन दिन की स्थिरता के बाद आचार्य ने शाम को सरवन की ओर विहार किया। 3 जून शुक्रवार को बाजना में उनका प्रवेश उत्सव मनाया जायेगा।