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शुद्ध के लिए युद्ध अभियान आखिर त्यौहार पर ही क्यों ?

शुद्ध के लिए युद्ध अभियान आखिर त्यौहार पर ही क्यों?
-नियामत_जमाला
भादरा, मानव जीवन के सातों सुखों में पहला सुख निरोगी काया को ही माना जाता है और इसके लिए शुद्ध पौष्टिक खाद्य सामग्री के साथ – साथ मानव जीवन के लिए स्वच्छ पर्यावरण का होना भी नितांत जरूरी है। पौष्टिकता को अगर थोडा हल्के में ले तो भी जीवनचर्या की सात्विकता तो हर हाल में अहम ही होती है। ऐसे में किसी भी जनकल्याणकारी सरकार का यह पहला कर्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों के स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखे। ऐसे समय में जबकि विज्ञान व तकनीकी कौशल ने ऐसे साधन मुहैया करवा दिए हो कि मिलावट शब्द ही बेमानी सा लगने लगा हो और हर तरफ मिलावटी कारोबार का वर्चस्व कायम हो चुका हो, सरकार का शुद्ध के लिए युद्ध अभियान काफी महत्वपूर्ण व आम जन के लिए काफी उपयोगी व सराहनीय कहा जा सकता है किन्तु विडंबना यह है कि ऐसा शुद्ध के लिए युद्ध अभियान केवल त्यौहार पर ही कुछ दिनों के लिए बाजार में नजर आता है जबकि वर्तमान में चौतरफा मिलावट के दौर में इसके प्रत्येक दिन होने की आवश्यकता है और यह अभियान जिस प्रकार त्यौहार की गहमा-गहमी में रफ्तार पकड़ता है वैसे ही ऐसे अभियान रोजमर्रा की प्रकिया में शामिल किए जाए तो शायद इसके और भी अधिक सार्थक व प्रभावी परिणाम सामने आ सकते है। मिलावट के कारोबार व धंधे की बात करे तो आज मिलावटी कारोबार का हर तरफ वर्चस्व कायम होता ही दिख रहा है। यूं भी आटे में नमक समाये तक तो मिलावट को आम आदमी ने कबूल कर ही लिया है, शायद यही वजह है कि दूध में पानी की मिलावट को तो जैसे आम बात होकर सामाजिक मान्यता भी मिल चुकी है। देखा जाये तो बढती जनसंख्या के लिए खाद्य पदार्थो की बढती मांग व आपूर्ति में असंतुलन के कारण को भी मिलावट का आधार माना जाने लगा है। मूल मिलावट खोरों को मिलने वाला संरक्षण व आम आदमी की अनदेखी व उदासीनता ने इस व्यवसाय को फैलने एवं फलने -फूलने का पूरा अवसर भी दिया है। जगह – जगह लगी दूध से क्रीम निकालने की मशीने, प्रतिदिन बसों व अन्य वाहनों से आकर उतरते मावे के अनगिनत कनस्तर, जगह जगह सजी मिठाईयों की दुकाने और कई बार नकली व मिलावटी घी बनाने वाले पकड़े जाने की खबरें तथा मिलावट के बढते मामलों के दौर के बीच शुद्धता के लिए एक मानसिक वातावरण बनाने की आवश्यकता भी है जिसमें साथ साथ जागरूक लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित हो वरना तो शुद्ध के लिए बार त्यौहार दिखने वाला यह युद्ध अभियान एक टकसाली शब्द व नारा ही बन कर रह जाएगा। अभियान के लिए अधिकारियों का सड़कों पर गाड़ियों का काफिला हो सकता है। फ्लैग मार्च या जांच के नाम पर युद्ध जैसा रूप तो इसमें लगे अधिकारी व विभाग दे सकते है लेकिन वास्तव में तो शुद्ध के लिए युद्ध तो मिलावट करने वालों के लिए ही है। जिसमें पहली प्राथमिकता चित की शुद्धता होना भी आवश्यक है वरना तो एक बार त्यौहार पर होने वाले ऐसे अभियान कोई सार्थक नहीं है, बल्कि खानापूर्ति जैसे ही है और सवाल खड़ा करता है कि मिलावट के इस दौर में आखिर शुद्ध के लिए युद्ध अभियान केवल त्यौहार के दिनों में ही क्यों? बाकी दिनों क्यों नहीं ?

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