न्याय के मन्दिर 19 दिन से बंद क्यों?
न्याय के मन्दिर 19 दिन से बंद क्यों?
कहाँ गई वो लोक अदालतें जो दूसरों को राजीनामा करने की सलाह देती है और खुद का मामला नहीं निपटा पा रही है?
मुकेश वैष्णव/दिव्यांग जगत/अजमेर
अजमेर । राजस्थान की राजधानी जयपुर की अधीनस्थ अदालतों में पिछले 19 दिनों से तथा प्रदेश की अन्य अदालतों में पिछले 7 दिनों से न्यायिक कर्मचारियों के सामुहिक अवकाश पर रहने की वजह से न्यायिक कार्य ठप्प पड़ा है।कहीं न्याय के मन्दिर खुल भी रहे हैं तो वहां न्यायिक कार्य पूर्णरूपेण बंद है तथा मुकदमों में कॉमन डेट दी जा रही है।जिसके चलते न्यायालय में विचाराधीन लाखों मुकदमों में किसी भी प्रकार की प्रभावी कार्यवाही नहीं हो पा रही है।निर्दोष लोग जो जेल में बंद है उनकी भी कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है।जिसके चलते आमजन में न्याय के मन्दिर के प्रति आक्रोष बढ़ता जा रहा है।
आइए जानते हैं आखिर क्या वजह है जिसकी वजह से न्याय के मन्दिर बंद हैं- राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ जिला शाखा अजमेर के अध्यक्ष ओमप्रकाश टाडा ने बताया कि राजधानी के जयपुर स्थित एनडीपीएस कोर्ट के सहायक न्यायिक कर्मचारी सुभाष मेहरा की दिनांक 10 नवम्बर को जज के घर की छत पर अधजली लाश मिली थी जिस पर कर्मचारी के परिवार वालों को बुलाकर कहा गया कि कर्मचारी द्वारा आत्महत्या की गई है।मृतक के परिवार वालों की और से उसकी बहिन द्वारा पुलिस थाना भांकरोटा को एक लिखित रिपोर्ट दी जिसमें उन्होंने न्यायाधीश द्वारा प्रताड़ित करने व हत्या का संदेह जाहिर करते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने तथा जज के प्रभावशाली होने से सीबीआई से जांच करवाने की मांग की।पुलिस द्वारा उक्त रिपोर्ट दर्ज नहीं करने पर राजस्थान न्यायिक कर्मचारी संघ की जयपुर शाखा ने राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति को दिनाँक 18 नवम्बर को 8 सूत्री मांगों का ज्ञापन देते हुए मांगे पूरी नहीं होने तक सामूहिक अवकाश पर रहने की चेतावनी दी।उक्त ज्ञापन देने के 10 दिन बाद भी जब हाईकोर्ट प्रशासन द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया तब 30 नवम्बर से प्रदेश की सभी अदालतों में भी न्यायिक कर्मचारियों ने अवकाश पर रहने की घोषणा की और उनके अवकाश पर होने की वजह से तब से न्यायिक कार्य पूर्णरूपेण ठप्प पड़ा है।राज्य के कई जिलों में न्यायिक कर्मचारियों की मांगों का समर्थन करते हुए बार के पदाधिकारियों ने भी समर्थन की घोषणा कर दी है।
क्या है मांगे- प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो,पीठासीन अधिकारी के खिलाफ विभागीय जांच की जाए,हत्या की सीबीआई जांच हो,हत्या के सबूत मिटाने वालों के खिलाफ कार्यवाही हो,जज के आवास पर रहने वाले भांजे की कॉल डिटेल निकलवाई जाए,चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को जज के घर पर काम करने को प्रतिबंधित किया जावे,पीड़ित परिवार को 50 लाख मुआवजा व एक सदस्य को नौकरी दी जावे,तीन वर्षों से दिए गए ज्ञापनों पर कार्यवाही की जावे।
आखिर क्यों नहीं हो रहा है विवाद का निस्तारण- न्यायिक कर्मचारियों द्वारा जज के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का दबाव बनाया जा रहा है जबकि कानून की मंशा के अनुसार सरकारी कर्मचारी व जज के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने से पहले विभागीय पदाधिकारी से अनुमति आवश्यक है तथा सीबीआई जांच के लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार की सहमति आवश्यक है।वहीं कर्मचारियों का कहना है कि मृतक के शरीर को देखने से ही लग रहा था कि हत्या की गई है तथा सबूत छुपाने के लिए बगरू में पोस्टमार्टम करवाया गया।पुलिस और जज पर संदेह करते हुए कार्यवाही की मांग की जा रही है।एक और जजेज द्वारा कानूनी प्रावधानों की बाध्यता बताई जा रही है तो दूसरी और कर्मचारियों का कहना है कि उनके साथ अन्याय किया जा रहा है।ऐसे में इस विवाद को कौन निपटाएगा?कौन मध्यस्थता करेगा? आमजन की समस्याओं व विवादों को निपटाने वाली न्यायपालिका अपने कर्मचारियों को क्यों नहीं समझा पा रही है?आखिर कब और कैसे निपटेगा ये विवाद?वही वरिष्ठ पत्रकार एवं डाँ मनोज आहूजा ने अपनी राय व्यक्त करते हुए बताया कि कर्मचारी की मृत्यु के कारणों की जांच होनी चाहिए और दोषी व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही भी होनी चाहिए फिर चाहे प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो चाहे मर्ग रिपोर्ट में निष्पक्ष कार्यवाही हो ।