शिक्षक दम्पति की अनोखी पहल,रेलवे स्टेशन पर पढ़ाते हैं बच्चों को
“पत्थर को तराश हीरा बनाने में लगा है एक शिक्षक दंपति”
आइये इस शिक्षक दिवस पर बिहार के एक ऐसे शिक्षक दंपत्ति से आपको मिलाने जा रहा हूँ जो विभिन्न रेलवे प्लेटफॉर्मो पर आवारगी और मुफलिसी की ज़िंदगी गुजार रहे सैकड़ों अनाथ ,बेसहारा,नशे के आदी बालश्रमिक बच्चों को शिक्षित और नशा मुक्त कर समाज के मुख्यधारा से जोड़ने में लगे हैं । उन बच्चों के बीच ज्ञान की असीम रौशनी फैलाने में लगे है जिनकी जीवन मे शायद कभी ज्ञान रूपी प्रकाश की कोई उम्मीद नही थी । जी हां ये शिक्षक दंपत्ति ऐसे अनपढ़, अनगढ़ बच्चों को तराश कर हीरा बनाने में लगे हैं जिनकी ज़िंदगी रेलवे प्लेटफॉर्म से शुरू हो कर नशे और अपराध के रास्ते पर चलते हुए एक दिन वही खत्म हो जाती है । ऐसे बच्चों का ना कोई अस्तित्व होता है और ना कोई पहचान । अगर उसका कोई नाम या पहचान है तो सिर्फ प्लेटफॉर्म का “कल्लर” । ऐसे बच्चे आपको अमूमन बिहार या भारत के हर छोटे-बड़े रेलवे प्लेटफॉमों पर कचड़ा बीनते , ट्रेनों में झाड़ू लगाते या फिर भीख मांगते या नशा करते मिल जाएंगे जिसे हम और आप आम ज़िंदगी का हिस्सा मान नज़र अंदाज़ कर आगे बढ़ जाते है ।
मैं बात कर रहा हूँ बिहार के बेगुसराय जिला अंतर्गत शोकहरा पंचायत 2 निवासी के एक शिक्षक दंपति अजीत कुमार एवं शबनम मधुकर की । पेशे से शिक्षक अजीत कुमार बेगुसराय जिला अंतर्गत तेघरा प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय रेलवे बरौनी में शिक्षक हैं । अपने खाली समय मे ये बरौनी जंक्शन रेलवे प्लेटफार्म व उसके आस- पास फूट-पाथ पर जीवन गुजार रहे बेसहारा बच्चों को शिक्षित व नशामुक्त कर शिक्षा और समाज के मुख्यधारा में जोड़ने जैसे सामाजिक कार्यों में लगे है । अजीत ने इस सामाजिक मुहिम की शुरुआत फरबरी 2013 में किया था । पहले तो इन्होंने प्रयास किया कि इन बच्चों को सामान्य बच्चों की तरह सरकारी विद्यलय से जोड़ा जाए लेकिन सरकारी विद्यालय के निर्धारित मानकों को पूरा ना कर पाने की वजह से इन्हें सफलता नही मिली क्योंकि ऐसे बच्चों का आधार कार्ड , जन्म प्रमाण-पत्र , स्थाई पता या सक्षम अविभावक का नाम उपलब्ध करवाना मुश्किल था, पर अजीत ने हार नही मानी और उन बच्चों को बरौनी जंक्शन रेलवे प्लेटफार्म के अनुपयुक्त खाली स्थान पर स्वयं ही पत्नी शबनम मधुकर और पुत्र दिव्यांशु राज और आर्यन राज के सहयोग से पढ़ाना शुरू किया । वेशक इसमें रेलवे अधिकारियों का सहयोग सरहानीय रहा ।
अब ये बच्चे भी अपने दिनचर्या के कामो से समय निकाल रेलवे प्लेटफार्म पर अपने माशूम आंखों में सुनहले कल का सपना लिए पढ़ाई करने के लिए जुटने लगे । सामान्य स्कूल की तरह अब ये बच्चे भी खुले आसमान के नीचे चलने वाले अपने स्कूल में पहले प्रार्थना ,फिर योगा और अक्षर ज्ञान पाने लगे । ताली , चुटकी , मूक अभिनय , गीत-संगीत जैसे रोचक गतिविधियों से होती है भाषा और गणित की पढ़ाई । शिक्षक परिवार के इस अनोखे मुहिम से जुड़ अब तक सैकड़ों बच्चे बन चुके हैं साक्षर तो वहीं दर्जनों बच्चों ने नशे की लत की किया तौबा। इतना ही नही इनमें से कई बच्चों ने स्थानीय एवं जिला स्तर पर विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग ले कई प्रशस्ति पत्र ,शील्ड और मेडल भी जीता ।
शिक्षक अजीत कहते हैं कि आरम्भ में ये काम काफी चुनौती पूर्ण था लेकिन स्थानीय समाज सेवी , कुछ शिक्षक साथियों और परिवार का सहयोग ने इसे आसान बना दिया । वही शबनम मधुकर ने कहा हमारी यह शैक्षणिक और नशामुक्ति अभियान बरौनी जंक्शन के कुछ बेसहारा बच्चों मात्र के लिए नही है , हमारी कोशिश है बिहार सहित पूरे भारत में जितने भी इस तरह के अनाथ , बेसहारा ,नशे के आदि बालश्रमिक बच्चे हैं जो भूख ,कुपोषण ,अशिक्षा के कारण बाल अपराध के रास्ते पर चल पड़ते हैं ऐसे नौनिहालों की खो रही बचपन और गुमराह हो रही ज़िंदगी को बचाया जाए । उन्हें भी वो सभी अधिकार और सुविधाएं मिले जो भारतीय संविधान के अनुसार एक आम बच्चे को मिलता है ।
जिन बेसहारा बच्चों को अपनो ने ठुकराया उसे इस शिक्षक दंपति ने गले लगाया ।
यद्यपि शिक्षक अजीत को यह मलाल हैं कि मैं इन बच्चों को विद्यालयी शिक्षा मुहैया कराने में अब तक नाकामयाब रहा, वही कोरोना महामारी के कारण इनका यह शैक्षणिक और नशामुक्ति अभियान भी प्रभावित हुआ ।
शिक्षक दंपत्ति की हौशले और इस अनोखे मुहिम को आज देश की जनता सलाम कर रही है ।